दिल्ली को मुफ्तखोर कहने से पहले ये पढ़िए
नईदिल्ली ।आम आदमी पार्टी चुनाव की जीत का जश्न मना रही है आम तोर पर चुनाव में हार जाने वाली पार्टियों के समर्थक जनादेश का सामान या आत्मचिंतन करने वाली बात करते है लेकिन दिल्ली चुनाव को लेकर पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर अजीव ओ गरीब तर्क चल रहे है दिल्ली के वोटर्स को मुफ्तखोर और आलसी बताया जा रहा है एक मिसाल देखिए
"आदमी को समझदार होना चाहिए पड़े लिखे तो दिल्ली वाले भी है ना देश से मतलब ना धर्म से मतलब बस केवल मुफ्तखोरी चाइए"
सोशल मीडिया पर ऐसे कई कार्ड शेयर हो रहे है इसी तरह के कई वीडियो है कई सोशल मीडिया पोस्ट है जिनपर लिखी बाते समझने के लिए आपको पीएचडी करने की जरूरत नहीं है साफ समझ आता है कि ये सारी बाते आम आदमी पार्टी के उन चुनावी वादों को लेकर कहीं गई है जिसमें पार्टी ने एक सीमा तक मुफ्त पानी बिजली मुफ्त शिक्षा मुफ्त स्वास्थ सेवाएं और मुफ्त परिवहन जैसे वादे किए है परिवहन वाले वादे को छोड़ दे तो बाकी मुफ्त सेवाएं दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने पहले कार्यकाल में ही देना शुरू कर दिया था इन्हें अरविंद केजरवाल की जीत में एक बड़ा फैक्टर मना जाता है और यही से मुफ्तखोर वाला तंज आ रहा है वैसे ट्रोलर्स को साइड में रख दे तो ये सवाल सबके मन में है कि ये मुफ्त सेवाओं वाला ये मॉडल कितना मजबूत है क्या इससे सर्कोरो का बजट नहीं चरमरा जाएगा। इस सवाल को टटोलते हुए इंडियन एक्सप्रेस ने १२ फरवरी को एक रिपोर्ट छापी जिसका शीर्षक है "explain for AAP २.० what is the challenge ahead?" है इस रिपोर्ट में कुचौर मत गिनाए जिसमें आम आदमी पार्टी ने खर्च बढ़ाया जैसे न्यूनतम मजदूरी को ९५०० से बढ़ाकर १४००० किया गया स्कूल में गेस्ट टीचर और आगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं का वेतन बढ़ाया गया इसी तरह ब्रद्दाजन विकलांग एवं महिलाओ की पेंशन भी बड़ाई गई ।
आरबीआई ये देश की बितिय सेहत पर एक रिपोर्ट जारी करता है इस रिपोर्ट के हवाले से अख़बार ने लिखा है दिल्ली में आप के आने के बाद शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च बड़ा है जबकि इसी दरमियान देश के बाकी राज्य इन क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दे पाए इस बड़े हुए खर्च के बाबजूद आज दिल्ली का बीतिय घाटा ( fiscal deficit ) देश में सबसे कम है भारत में राज्य सरकारें ओसतन राज्य गरेलू उत्पाद(जीएसडीपी) के २.६ फीसदी के घाटे में रहती है दिल्ली फिलहाल ०.७ फीसदी के घाटे पर है यानी राष्ट्रीय ओसात के तीन गुना से भी कम घाटा । २०१९-२० में रेवेन्यू डेफिसिट +०.६ प्रतिशत था यानी सब पैसा खर्च करने के बाद भी पैसा बच गया था
यह कहना दिल्ली सरकार पैसा बांट कर वोट बटोर रही है समझ से परे है आज जानादेश आम आदमी के पास है और यही बीजेपी जो आज दिल्ली की जनता को मुफ्तखोर ,राष्ट्रविरोधी और आलसी बता रही है ५ साल बाद इन्हीं से वोट मांगती दिखेगी